खेल कई खेले,
थे दूसरो ने रचे ...
किताबे कई पढ़ी,
थी दूसरो ने गढ़ी ...
पाँव कई गाँव मे पड़े,
थे दूसरो ने ढूँढे ...
गीत कई गुनगुनाए,
थे दूसरो ने लिखे ...
फ़िल्मे कई देखी,
थी दूसरो ने बनाई...
रैलिओं मे कई बार दौड़ा,
था हुआ सीना दूसरो का चौड़ा ..
नारे कई लगाए,
थे किसी और के लिए बनाए ...
फल कई खाए,
थे बीज दूसरो ने बोए ...
उंगलिया खूब उठाई,
थी दूसरो पे साधी ...
कमियाँ खूब ढूंढी,
थी दूसरो मे लगी...
सुझाव कई सोचे,
थे दूसरो को दिए ...
सोचता हूँ ...
चोरी खूब किया...जो था दूसरो ने बनाया
मैने किया क्या - जीवन जिया क्या ?