Monday, July 30, 2012

उड़ान


उड़ने की चाहत है सबको...
पँखो का सहारा मिला नही...  

पँखो को अब कुछ और नही...
सपनो की ज़रूरत होती है...  

कुछ पाने के सपने देखो...
सपनो से पंख मिल जाएँगे...  

इन पँखो को हवा लगने दो...
खुले आसमान मे उड़ चलो...  

एक डाल से दूसरी डाल पर...
पेड़ो की छाँव मे खेलो... 

रंग बिरंगी तितलियो के संग...
सतरंगी इंद्रधनुष का तीर बनो.. 

सूरज की आँखों मे घुरो..
चंदा की शीत मे आराम करो.. 

तेज़ हवा के झोंको के...
तुम अब साथी बन जाओ...  

घने बादलो की औट लो...
कभी धूप मे तुम घुमा करो... 

इस चाहत को ना अब क़ैद करो ..
सपने देखो...   उड़ान भरो...  खुले आसमान (गगन) मे राज़ करो |

Wednesday, July 18, 2012

औरत


गर्भ से आई एक आवाज़ 
माँ तुम मुझसे क्यूँ हो नाराज़ |

पाप क्या ऐसा मेने किया
कि हो रही मेरी भ्रूण हत्या |

इस दुनिया मे आना चाहती हूँ
रंगो मे रंग जाना चाहती हूँ |

कुछ पाना है, कुछ बनना है
दुनिया में कुछ करके जाना है |


बेटी, पाप तुमने कोई नही किया
पर दुनिया का अन्याय भी नहीं सहा |

माना हम है जन्म दाता 
लेकिन कहाँ कोई हमारी सुनता |

इस दुनिया में तुम कदम रखलो
उससे पहले औरत की व्यथा सुनलो | 

बाप से सहम के रहना होगा
भाई से डर के रहना होगा |

जात हमारी पहचान नही है
पीहर हमारा घर नही है |

कोई राक्षसों जैसे तुम्हे प्रताडेगा
कोई आँखो से बलात्कार करेगा |

खुद कोई शौक ना पालना
बीवी बनके घर संभालना |

उम्र भर हमे कोसा जाएगा
अहम के नीचे कुचला जाएगा |

चुप्पी साधे रहना होगा
सब कुछ तुमको सहना होगा |

आगे भी कुछ सुनना चाहती हो 
अभी भी दुनिया मे आना चाहती हो ?

Saturday, July 14, 2012

52 सेकंड


मैं एक आम इंसान हूँ,
दो वक़्त की रोटी के लिए 
रोज़ नौ घंटे की नौकरी करता हूँ |


एक आज़ाद देश का नागरिक हूँ, 
पर गुलामी की बेड़ियों से निकलने के लिए
आए दिन आंदोलन करता हूँ |


हर पाँच साल में सरकार चुनता हूँ,
और अगले पाँच साल तख्ता पलट हो
ये ख्वाब देखता हूँ |


अन्ना के हर अनशन की रैली में जाता हूँ,
और पकड़े जाने पे अगले ही दिन,
रिशवत देके छुटकारा पाता हूँ |


हर रविवार आमिर के साथ,
डेढ़ घंटे मे सब बदलने के ख्वाब देखता हूँ,
फिर अगले रविवार 'सत्यमेव जयते' के प्रसारण का इंतज़ार करता हूँ |


किसी लड़की की भ्रूण हत्या, रेप, मोलेस्टेशन की खबरसुनके
फेसबुक पर जस्टीस फॉर वूमन के कमेंट लिखता हूँ
अगली बड़ी खबर आने तक, उसपे लाइक गिनता हूँ |


ना जाने कितनी ऐसी बातें है, जिनको जहन में भरा है
चिंतन किया है, और शायद यह निष्कर्ष निकाल पाया हूँ कि ...


मैं एक हिंदुस्तानी हूँ, 65 बरस का हो गया हूँ, 
पर आज भी 15 अगस्त, 26 जनवरी को
52 सेकंड के जन गन मन की ज़िंदगी जीता हूँ |


Sunday, July 8, 2012

वास्तविकता


रात के दो बज रहे है ...
दोपहर में बारिश हुई थी..
और सड़क धुली धुली लग रही है...
चाँद शरमा कर काले बादलो से परदा कर रहा है.. 


खिड़की खुली हुई है...
मीठी मीठी हवा आ रही है ..
गीली मिट्टी की भीनी खुशबू है, 
या शायद उसके बाल खुले है..
अंतर करना मुश्किल हो रहा है...


उसके घर का चक्कर काटा अभी हमने...
अंदर बत्ती जल रही थी, और गाना चल रहा था..
"गली में आज चाँद निकला......" 
मानों अंदर बैठा चाँद बाहर निकलने को बैताब है ..


उसी के घर के सामने कुछ देर इंतज़ार किया...
शायद चाँद सही मे बाहर निकले...
अफ़सोस, ये भी पर्दो के पीछे ही रहा...
और अगली धुन सुनाई दी .."आज जाने कि ज़िद्‍द ना करो
हमसे और वहाँ रुका ना गया |


ख़यालों और हक़ीकत में बहुत फ़र्क होता है, 
ख़याल है जो उपर बुन दिए है, 
हक़ीकत है, कि बैठे है हम अपनी स्क्रीन के सामने, 
बुन रहे है कुछ ख़याल  
चाय की चुस्की लेने को दिल है बैताब, लेकिन है नही किसी का साथ |


और वास्तविकता ऐसी है, जो किसी से बयान भी ना कर पाएँगे |