कितना इतिहास पढ़ोगे
कितना इतिहास गढ़ोगे
एक राजा और प्रजा की
कितनी कहानियां सुनोगे
कहानी में एक किरदार होगा
वो किरदार राजा का होगा
राजा का चित्रण हर जगह होगा
प्रजा पे तो सिर्फ नियंत्रण होगा
राजा फिर विकास की बात करेंगे
प्रजा फिर उनपे विश्वास करेगी
राजा के खूब समर्थक होंगे
राजा के आगे जो नतमस्तक होंगे
राजा जी मन की बात कहेंगे
प्रजा फिर उनकी बात सुनेगी
राजा जी फिर आश्वासन देंगे
प्रजा फिर उनका शासन सहेगी
राजा जी फिर अध्यादेश लायेंगे
प्रजा को छोड़ वो परदेश चले जायेंगे
प्रजा के घर में जब शादी होगी
पैसे नहीं है, कहके राजा की हसीं निकलेगी
राजा जी फिर आदेश देंगे
प्रजा हमारी फिर थाली पिटेगी
राजा डालेंगे फिर मोर को दाना
प्रजा का फिर लूट जायेगा बयाना
प्रजा फिर भीख मांगे, खुदको घुटन से बचाने
राजा जी लग जाएंगे फिर अपनी दाढ़ी बढ़ाने
राजा की चुप्पी फिर हताश करेगी
प्रजा की जब गंगा में लाश बहेगी
राजा फिर भी किसी की ना सुनेंगे
वो सिर्फ अपना महल चिनेंगे
राजा के महल का फिर टिकट बिकेगा
प्रजा की लाशों भरी नींव पे जो टिकेगा
राजा की आंखो में आंसू भरा एक दृश्य होगा
प्रजा का जहां न कोई इतिहास, ना भविष्य होगा
राजा फिर एक इतिहास लिखेंगे
राजा फिर एक इतिहास गढ़ेंगे
राजा के इस इतिहास में
राजा ही राजा सब कुछ होंगे ।
- अंकित कोचर