Friday, December 28, 2012

मुजरिम, जनता और सवाल


मुजरिम
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क़ैद है, सलाखों के पीछे
पिछले कुछ दशकों से |
गवाह थे, सबूत भी थे
समय के साथ, अब ना रहे

जनता
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इंसाफ़ की माँग कर रही है
पीढ़ी दर पीढ़ी, कचहरी के
चक्कर काटे जा रही है |


सवाल 
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क़ैद है कुछ ज़हन में,
बिल्कुल मुजरिमों की तरह
ज़ुबान तक आते है,
चक्कर काट के चले जाते है
बिल्कुल जनता की तरह |
जिनके पास जवाब थे
वो अब नही रहे ,
सबूतों-गवाहों की तरह |

Monday, December 24, 2012

सचिन तेंदुलकर

खेल वही होगा, मैदान भी वही होंगे
वही 22 गज़ की पट्टी के इर्द गिर्द
नये खिलाड़ी अपनी धाक जमाएँगे 
चौके - छक्के अभी भी लगेंगे 
शतक और भी कई लगेंगे 
रनों की बौछार अभी भी होगी 
कुछ नये रेकॉर्ड बनेंगें,  कुछ टूटेंगें


अगर कुछ नहीं होगा, तो 
10 नंबरी नीली जर्सी में
वो छोटा कद वाला,   
मैदान में वो कोरस गूँज |

नही उठेंगे, कुछ सवाल 
वो खेल रहा है ना अभी तक ?
उसने आज कितने रन बनाये ? 

और हाँ,
शायद उठ जाएगा लोगों का 
'क्रिकेट' धर्म से विश्‍वास |

Saturday, December 22, 2012

कवि - प्रकाशक


कवि महाशय,

ये जो विचार है, थोड़े सस्ते है
कुछ मोती-वोती सजाइए इनमें
तब जाके कुछ भाव लगेंगें
तब जाके किसी बाज़ार मे बिकेंगें |


प्रकाशक महोदय,

गुस्ताख़ी माफ़ करना
जिस बाज़ार में, आदमी बिकता है
उस बाज़ार में बिकने से भला
ये विचार मेरे ज़हन में ही अच्छे है |

Monday, December 17, 2012

परेशान

कुछ परेशान हूँ
उसने, जिसने अभी लिखना भी नही सीखा
उसका शोक संदेश कैसे लिखूं ?

जैसे तैसे लिख भी दूँ,
तो उन माँ-बाप के दिल का
हाल कैसे महसूस करूँ ?

दिल का हाल समझ भी लूँ
तो, दूसरे देश की छोड़, अपने की सोच
ऐसा बोलने वालो को क्या जवाब दूं ?

और अपने देश में,
किसी माँ की कोख से निकला,
किसी बहन का भाई
जब खुले आम बलात्कार करे,
तो उस लड़की को कैसे इंसानियत मे विश्वास दिलाऊं
और धरती पर पल रहे इन हैवानों को कैसे इंसान समझुँ ?

Wednesday, December 5, 2012

चिठ्ठी


सूखे से त्रस्त गाँव में
सभी आँखे टकटकी लगाए
टेंकर का इंतज़ार करती है

कि टेंकर आएगा
दो घूँट गले मे पानी उतरेगा
और दो शब्द मुँह से निकलेंगे

पर बाबा, आज भी गाँव मे
डाकिये की ताक में रहते है
जब भी आता है,
सूखे पड़े गले से ही पूछ लेते है

"अमरीका से कोई चिठ्ठी आई है ?"  
अब भला वो नही जानते
चिट्ठियों को थोड़े ना कोई
फ़ेसबुक पे शेयर कर सकते है |

Sunday, December 2, 2012

तलाश


हर सुबह नहा धो कर 
शहर से दूर, 
उँची इमारतों के जंगल में 
मुखौटे पहन के
झूठी मुस्कानें चढ़ाके
ना जाने कौन कौन 
भटकते रहते है वहाँ  

वो जंगल बड़ा लुभावना है 
शीशे लगे है इमारतों पे 
वातानुकूलित कमरे है

पर वहाँ बैठ के हर कोई,
फोन, पिंग, और मेल पे
सामने वाले का काटते है 

ना जाने किस तलाश में 
रोज़ खुदको ही खोते रहते है 
और, हर सुबह उठ, नहा धो कर 
शहर से दूर, इमारतों के जंगल में 
एक मौत वो मरते है |

Thursday, November 29, 2012

Honor Killing


क्या गुनाह किया था उन्होने
एक ब्याह ही तो रचाया था

कत्ल कर दिया, ना सिर्फ़ उनका
बल्कि उस अजन्मी औलाद का भी

शायद एक होनहार लाल पैदा होता
और तुम्हारी ही बेटी से ब्याह रचाता

वाह रे वाह, क्या ग़ज़ब वार किया
एक तीर मे ना जाने कितनों का शिकार किया

एक माँ से बेटा-बहू, एक औलाद को अनाथ
और अपनी ही बेटी को विधवा कर दिया

सच में, क्या गुनाह किया था उन्होने
एक ब्याह ही तो रचाया था ?

नीची बिरादरी का बतलाकर बात टालते हो
और कतल करके खुद को उँचा समझते हो |

Wednesday, November 28, 2012

भारत भविष्य


जर्जर हो चुकी वो इमारत
जहाँ छत टपकती रहती है
किच-किच करती खटिया पे
माँ बच्चे को जनम देती है

सरकारी दफ़्तर के खातों में
नाम दर्ज हो जाता है
जहाँ बाबू लोगों से ज़्यादा
दीमक निवास करती है

उबड़ खाबड़ ब्लैक बोर्ड पे
घिसे चाक के टुकड़ो से
पक्की सड़को के बनने के
नैनो में जो सपने भरते है

हाँ, इसी विशाल भारत में
एक ऐसा भी भारत बसता है
जिसका खुदका कोई भविष्य नहीं
पर वो भारत का भविष्य कहलाता है |

Tuesday, November 27, 2012

गणतंत्र


जहाँ पूरा तंत्र सरकार की बैसाखी पे खड़ा है
सरकार, गण के मतों की बैसाखी पे खड़ी है 
और गण समस्या के समाधान के लिए, 
सरकार को बैसाखी बनाए लाइन मे खड़ा है|

वही गण मत ना देने की लापरवाही मे पड़ा है 
अगर वह तंत्र सुचारू नही चल रहा
तो इसका दुखड़ा रोने मे वो सबसे आगे बढ़ा है

Saturday, November 24, 2012

गाँधी


हिंसा करता जगत फिरू
एक अहिंसक की चाह में

मार काट है मचा रखी
एक अहिंसक की चाह में

दीप जलाऊं माँ लक्ष्मी के
एक 'गाँधी' की चाह में |

Thursday, October 25, 2012

अमर


माँ की कोख में था संसार
2 गज़ ज़मीन पे हुई विदाई
फिर भी ये सारी ज़िंदगी
ज़मीन तेरी-मेरी करने में बिताई


आके तो लंगोट ही पहना
और जाते हुआ नसीब कफ़न
बाकी बीच मे सारी ज़िंदगी
भरी अपनी 'जेब' मे कमाई


आया अकेला,जाएगा भी अकेले
कुछ हस्ती खुदको बना लेना
कि जाने के बाद ये दुनियाँ
'अमर' तुझको बनके रखे |

Wednesday, October 24, 2012

ये भी तो एक रिवाज है


कुछ रिवाज ऐसे पूरे होंगे  -

एक गंभीर वातावरण
आँखों में कुछ आँसू
शोक से मुरझे चेहरे
सीने में छुपा वो दर्द
एक अंतिम यात्रा
और कुछ श्रद्धांजलियाँ |


शरीर की ये जटिलताए
खाक मे है मिल जानी
अगले दिन से तुम्हे
कहाँ, मेरी याद है आनी ?
तस्वीरे हर और होंगी
सुना सुना भी लगेगा
आया है, तो जाना होगा
ये कहके आगे बढ़ना होगा |


ये भी तो एक रिवाज है
पूरा करता जिसे हर समाज है |

Sunday, October 21, 2012

तुम ही हो ना ?


घुप्प अंधेरो में भी
साया पीछा करता है

सन्नाटो में भी कभी
आवाज़े सुनाई देती है

आँखे जब बंद करता हूँ
रोशनी दिखाई देती है

लगे ऐसा छुआ किसी ने
हवा जब चलती है

ये साया, ये आवाज़े
ये रोशनी, ये हवाएँ -
ये तुम ही हो ना ?

Sunday, October 14, 2012

लक्कड़


एक लकीर खींच दी, आग और खून से
कर दिया बँटवारा, ज़मीन का, देश का

अपने ही घर से बेघर होके, चल तो दिए
वो उधर से इधर, और ये इधर से उधर

लेकिन मंज़िल पे शायद लाशें ही पहुँची थी
ट्रेने लदी थी, लाशों से, मानों लक्कड़ लदे हो

इन बातों को कई दशक बीत गये है,
लेकिन ज़ख़्म अभी भी भरे नही हैं

उस लकीर से आज भी खून बहता है
आग लगती है कहीं, धुआँ हर जगह उठता है |

Wednesday, October 10, 2012

वक़्त


दौड़ती ये ज़िंदगी है  
भागती ये ज़िंदगी है 

पैसे कमाने की दौड़ में
थकने का भी वक़्त नही 

वक़्त नहीं है मेरे पास
वक़्त नहीं है तेरे पास

मर रहा हूँ मैं इस पल
मर रहा मैं हर एक पल 

जाने कब हूँ जी रहा 
ज़िंदगी से मैं पूछ रहा

क्या करू मैं अब तेरा 
जीने का जब वक़्त नही ?


Thursday, September 20, 2012

प्यार

खर्च करने के लिए अल्फ़ाज़
ना उनके पास, ना मेरे पास

नज़रों से कुछ गीत लिखे
खामोशियों से संगीत दिया

सरसराती हवाओं से उन्हे
उनके कानों तक पहुँचाया

मन्न मे छुपे हुए ख़यालों को
उनके दिल के पते पे भेजा

ग़रीबी का ऐसा मंज़र छाया
फिर भी हमने प्यार किया |


Tuesday, September 18, 2012

फ़ासले

सफ़र तो साथ ही शुरू किया था
पर मंज़िल का पता जो ना था 

तुम जो हमे 'आप' कहके पुकारते
नयी दोस्ती में फासलो की हिदायत देते

ख्वाब तो हमने साथ ही देखे थे 
हक़ीकत के मायने जो ना थे 

ख्वाब तो दे दिए, पर नींदे चुरा गये 
सफ़र मे अब कुछ फ़ासले आ गये |

Saturday, September 15, 2012

याद


जैसे हर सफ़र कटा है,
अगला सफ़र भी कट जाएगा

जैसे हर पल बीता है,
आने वाला पल भी बीत जाएगा

जैसे हर दोस्त बिछड़ा है,
कोई नया बनेगा, और बिछड़ जाएगा

जैसे हर किसी का साथ छूटा है
कोई और आएगा, और साथ छूट जाएगा

जैसे तुम चले गये हो, बस यादें छोड़ गये हो
एक दिन मैं भी चला जाऊँगा, शायद तुम्हे याद आऊंगा |


Thursday, September 13, 2012

फिर मिलेंगे


वो जो सीधा रास्ता था चलता
जो बाईं और था करवट लेता

उसी मोड़ पे था एक चबूतरा
जहाँ हमेशा मैं तुमसे मिलता

जहाँ कभी उन पेड़ो के नीचे
लम्हो के कुछ बीज थे बोए

ख्वाब देखे थे इनको हम सींचे
अब है हमने ये सपने खोए

जहाँ कभी बातों की बिगुल से
कुछ थे हमने संगीत संजोए

देखो तो अब लगे मुरझे से
हमने अब वो लम्हे खो दिए

सोचा था फिर लौट आएँगे
तुमसे हम फिर वही मिलेंगे 

पर वहाँ कभी लौट के ना जाना
हमसे कभी फिर तुम ना मिलना

Wednesday, September 12, 2012

बातें

बातें है, चलती रहती है
ख़तम ही नहीं होती है

यहाँ वहाँ से, इधर उधर से
आती जाने कहाँ किधर से

मेरी तेरी इसकी उसकी
मीठी कड़वी जाने किसकी

कभी रूलाती कभी हँसाती
नित नये ख्वाब दिखाती

बिना सिर और बिना पाँव के
नये नये रंग रूप बनाती

बातें है, चलती रहती है
चलती रही और एकाएक

रुक गयी ये बातें |
कहाँ गयी वो बातें |


Tuesday, September 11, 2012

कल्पना

ठंड के लहर सी तुम्हारी यादें
फटे स्वेटर सा हमारा प्रेम

आलसी भोर में वो सिहरना
बाहों मे तेरी वो जलता अलाव

सूरज सी तपन बाँटे ये बदन
छुए जो तुझे बस मेरा ये मन्न

ले चल कही अब दूर मुझे
कल्पना की दुनियाँ से परे |

Thursday, September 6, 2012

याद


मुझे तेरी याद आती है
ऐसे ही जब तन्हा होता हूँ

तेरा गुस्सा याद आता है
सवेरे जब कड़क चाय पीता हूँ

तेरी आँखे याद आती है
जब सूरज उगते हुए देखता हूँ

तेरी महक याद आती है
जब बाग मे सैर करने जाता हूँ

तेरी जुल्फे याद आती है
जब पेड़ की छाँव मे आराम करता हूँ

तेरी आवाज़ सुनाई देती है
जब पेड़ पे कोयल कूहु कूहु करती है

तेरा स्पर्श सा लगता है
जब मखमल के गलीचे पे बैठता हूँ

तेरी चाल याद आती है
जब बिल्ली रास्ता काटती है

तेरा चेहरा सामने आता है
जब चाँद निकल के आता है

मुझे तेरी याद आती है
ऐसे ही जब कुछ पंक्तियाँ बुनता हूँ

मुझे तेरी याद आती है
ऐसे ही जब तन्हा होता हूँ |

Wednesday, September 5, 2012

बहाना

ख्वाबों से है रिश्ता बहुत पुराना
जैसे उसकी एक नज़र है चुराना

ऐसी आदत है हमको पड़ी
दिखे हर वक्त वो सामने खड़ी

आँखे है, खुली हो या बंद
लगे की अब वो है रज़ामंद

ये तो बस ख्वाब ही है देखती
नींद का तो बस बहाना है करती |

Thursday, August 30, 2012

इंतज़ार


साँझ पड़े ढल जाता है ये,
पर हर सुबह उसी सूरज को उगते हुए देखता हूँ

आकार, रंग रूप बदलकर ही सही,
हर रात आकाश मे कमजोर चाँद को भी चमकते देखता हूँ...

पतझड़ मे पीले बनके झड़ तो जाते है ये,
पर फिर बसंत मे उन्ही पत्तो को उगते हुए देखता हूँ

हर मौसम अपना रंग दिखा के चला तो जाता है,
पर फिर उसी मौसम को लौटते हुए देखता हूँ...

उड़ जाते है, सुबह सुबह सब पंछी,
पर हर सांझ ढले उन्हे लौटते हुए देखता हूँ...

कुछ लोग छोड़ चले गये है,
इंतज़ार कर रहा हूँ.. शायद उन्हे भी लौटते हुए देखूं |

कोना


कलाकारों का लगा था दरबार
आए हुए थे वहाँ कुछ चित्रकार
कर रहे थे अपने काम का प्रचार
कुछ हमारी भी इच्छा हुई
एक तस्वीर दिल मे छपवाने की
कुंची से, दिल के कोने वाली दीवार
पे एक एक चेहरा बना दिया
और रंग भर दिए आग के ..

दरबार तो उठ गया..
चित्रकार भी चला गया दूसरे काम पे
पर वो चेहरा आज भी वहाँ कोने में
तन्हा बैठा है, और उसमे भरे रंग
इस दिल को जलाते है |

Wednesday, August 29, 2012

बिल


दरवाजे के ठीक बगल मे 
एक जूता रखने का स्टेंड है
जूते इतने ज़्यादा है, 
कि स्टेंड छोटा पड़ रहा है 
पर पहनने के लिए पाँव सिर्फ़ दो ही है 

अब हमे ज्ञान मत देना की 
कुछ पैसा दान ही कर देते
इतना फालतू जुतो मे ना खरच के 
किसी को दो वक्त की रोटी दे देते

हम रोज़ नये जोड़ी जूते नही पहनते 
ना हमे शौक है दिखावा करने का 
रोज़ एक ही जोड़ी पहनते है 
बाकी जुतो मे चूहो ने अपना घर बना लिया है 
अब इस शहरी भीड़ भाड़ मे उन्हे कहाँ बिल खोदने मिलेगा |

Tuesday, August 28, 2012

सोच

ऐसा कुछ भी तो नही, 
जो बदल गया हो 
पिछले कुछ सालो में

वही हिन्दुस्तान, वही पाकिस्तान 
वही आपस में चल रहे मैच का रोमांच
वही झगड़े, वही विस्फोट और वही आतंकवाद 

यहाँ तक की वही सोच - 
गर पैदा हुआ होता विभाजन से पहले 
तब भी सोच रहा होता यही उस रोज़

विभाजन के बाद सचिन होगा किस और
हिन्दुस्तान या पाकिस्तान ?
कभी ... ये ख़याल नही आया होता -

कि काश ये विभाजन ही ना हो |

Saturday, August 25, 2012

कर्तव्य

बँट रहे थे बस्ती मे मूल अधिकार,
मच गया था वहाँ पे हाहाकार

उमड़ पड़े थे यूँ झुंड मे सब,
जाने मौका मिलेगा ऐसा फिर कब

पहले आओ, पहले पाओ,
ऐसा कोई हिसाब ना था

जिज्ञासा में फिर भी हमे,
अब और इंतज़ार ना था

कागज का एक टुकड़ा,
काले अक्षरों से कुछ उकेरा

टर्मस् एंड कंडीशन लागू,
बगल मे चमकता सितारा

साथ मे जो शर्ते रखी थी,
वो हमने नहीं पढ़ी थी

मूल अधिकारों के साथ
कर्तव्य की किसे पड़ी थी |

Tuesday, August 21, 2012

2G


समय कितना तेज़ी से बदल रहा है ||

एक समय था,
जब स्कूल जाया करते थे सिर्फ़ उसे देखने
गर दिख जाएगी वो तो दिन अच्छा बीतेगा
बात तो उन दिनों होती ही नही थी ..

बस नज़रे मिलती थी, और प्यार हो जाता था
मानो प्यार तो नेत्रशोथ ( conjunctivitis ) है |


धीरे धीरे इंटरनेट का ज़माना आ रहा था
उसके नाम के सामने की हरी बत्ती जलती
और दिल की धड़कन चलने लग जाती
कभी पीली या लाल होती, तो लगता
मानो ज़िंदगी मे विराम लग गया है |

लिखकर बात करना कितना आसान होता है
ये तब जाके समझ आया
जो बात ज़ुबान तक नही आ पाती
कीबोर्ड के सहारे झट से टाइप कर देते थे

जब तक पूरे दिन मे बात नही होती
एक उकसाहट सी बनी रहती थी
बस ऑनलाइन होना है और बात करना है

बात हो जाने के बाद, ख़यालो मे डूब जाना ...
आह ..सोचकर लगता है, कितना हसीन होता था

मोबाइल उतना प्रचलित नही था
कॉल, मेसेज रेट्स थोड़ा महँगा था

और आज देखो, सब इतना सस्ता हो गया है
की हर पल फ़ोन पे जवाब देना पड़ता है,
कहाँ हो जानू, कब आओगे, कॉल बेक क्यूँ नही किया
वग़ैरह, वग़ैरह, वग़ैरह....
तंग आ गया हूँ |
प्रेमी हूँ, या कैदी ?

काश ये 2 जी स्केम ना हुआ होता ||

बॉलीवुड

कुछ ऐसी है कहानी
है सौ बरस पुरानी

फालके साहब ने की थी शुरुआत,
सच की थी ना कोई आवाज़

आलम आरा ने खामोशी तोड़ी
प्यासा ने कविताएँ जोड़ी

किसान कन्या ने रंग भरा
मदर इंडिया ने इतिहास रचा

मुघल - ए - आज़म ने प्रेम सिखाया
राज कपूर ने आवारा बनाया

राजेश खन्ना बने पहले सुपर स्टार
आँखो की टीम टीम से किया लड़कियो को शिकार

धर्म पाज़ी थे हमारे ही-मेन
अमिताभ थे एंग्री यंग मेन

गब्बर से हर बच्चा डरता
मोगेंबो हमेशा खुश होता रहता

भाई भाई के बीच दीवार बनी
बंगला, पैसा, गाड़ी से बड़ी माँ बनी |

स्वर्ण युग से गाड़ी कुछ आगे बढ़ी
परिवारिक, रोमॅंटिक की लगी झड़ी

कयामत मिलने तक प्यार किया
दिलवाले बनके दुल्हनिया का इंतेज़ार किया

दिलो का बादशाह - शाहरुख ख़ान
सबका भाई - सलमान ख़ान

डेविड - गोविंदा बने कॉमेडी किंग
अक्षय - अजय बने स्टंट किंग

आमिर का एक अलग ही ब्रह्मांड
उसने बनाया खुदको एक ब्रांड |

सत्या से एक नया स्कोप खुला
'कलाकारो' को 'स्टार' के उपर दर्जा मिला


आधुनिक काल मे विश्व मे लोकप्रियता बढ़ी
लेखन, निर्देशन में हुनरता मिली


चक दे, रंग दे और लगान से
देश भक्ति जागी हर आवाम में


करोड़पति बना वो गंदी बस्ती से
खिताब दिला गया ओस्कर मंच पे


इस कहानी को जो खींचना चाहे
वासेपुर की पीढ़िया ख़तम हो जाए


बॉलीवुड है नाम मेरा
हर शुक्रवार होता भाग्य का फ़ैसला मेरा


100 बरस की उमर है मेरी
3 घंटे की ज़िंदगी में जीता |



Saturday, August 18, 2012

असंस्कारी


बेसुधी सी, नकली मुस्कान चढ़ाए 
संकड़ी गलियों में, लाल बत्तियों में 
भभकते कमरो में, तंग गद्दो पे 
अपना ठीकाना बना लिया | 


मुँह छिपाके लोग आते है
कुछ पैसे थमा जाते है 
कुछ हमे साथ ले जाते 
पर आबरू लूट जाते है|


भावनाए घर छोड़ के आते 
कामनाएँ साथ लेके आते
जिज्ञासा भर भर के लाते
हवस अपनी मिटा के जाते |


फ़र्क नही पड़ता अब कुछ 
महसूस नही होता अब कुछ 
बुरा भी नही लगता अब कुछ 
अच्छा जो बचा नही अब कुछ |


शायद रोज़ नये लोग है आते  
अलग डील-डौल के भी गर होते 
हमे तो वो सब एक ही लगते 
रोज़ हमे नया नाम दे जाते |


नाम में क्या रखा है 
पता जान के क्या करना है 
वैश्या मुझे बुला लेना 
पुनर्वासन की बात चले तो 
असंस्कारी कहके समाज से निकाल देना |

Wednesday, August 15, 2012

छुट्टी

सुबह जल्दी उठना, सफेद पौशाक पहनना 
माँ, बाबा, भाई, बहन से लेकर, 
बस स्टेंड तक मिलने वाले राहगीर को
बस मे ड्राइवर से लेकर, साथियों को 
स्वतंत्रता दिवस की मुबारक बाद देना  |

देश भक्ति की धुन मे स्कूल पहुँचना,
प्रार्थना स्थल पे पंक्ति मे  लगना 
ध्वजारोहण पे सलामी देना 
और राष्ट्रगान पे सावधान मे खड़े होना 
वापस आते हुए अपने लड्डू लेना |

हाँ माना लड्डू के लिए ही सही 
पर एक जज़्बा था, एक जुनून था 

यादें है जो बचपन मे पिरोयी थी
स्वत्रंता दिवस की, और आज..

छुट्टी से बढ़कर कुछ और नही बचा |


Tuesday, August 14, 2012

कब बदलूँगा मैं ?

राह मे चलते हुए देखा, सामने लड़की के कपड़े फट रहे थे,
घर आके टीवी मे देखा तो रेप की सनसनी खबर चल रही थी |

पड़ोस मे कल दिन दहाड़े किसी का कत्ल हो गया, वो मेने नही देखा
पड़ोसी की लड़की रात घर देर से आई, पूरा मोहल्ला देख रहा था |

पड़ोस मे जब कत्ल हुआ, तो चीखने की आवाज़ नही सुनाई दी
पड़ोसी का लड़का जब रियाज़ कर रहा था, तो कान फट गये |

दंगे भड़के थे बगल वाली फॅक्टरी मे और आग भी लगी थी 
बंद शीशे के ओफिस मे ना शोर सुना, ना जलन महसूस हुई |

फूटपाथ पर कुचले हुए आदमी का बहता खून तो दिखाई दिया
पर कुचलने वाली तेज़ रफ़्तार की गाड़ी का नंबर प्लेट नही | 

....................................................................


जिस लड़की का रेप हुआ, उससे मेरा कोई रिश्ता नही था 
- हो सकता था |

जिस का कत्ल हुआ, उसको मैं जानता तक नही था 
- जान सकता था |

जिस फॅक्टरी मे आग लगी थी, वो तो मेरा प्रतिद्वंदी था 
- समर्थक हो सकता था |

फूटपाथ पर जो कुचला गया - उससे कुछ लेना देना नही था 
- लेन देन हो सकता था |

पर फिर भी.....
जब भी घर से बाहर निकलता हूँ, बन जाता हूँ अर्जुन
जिसको दिखाई देती है सिर्फ़ चिड़िया के आँख की पुतली  

और जब देखता हूँ टीवी पे ख़बरे, या पढ़ता हूँ अख़बार 
आँखे हो जाती है अनगिनत और सोचता हूँ - " कब बदलेगा भारत देश " 


कभी ये नही सोचा  "कब बदलूँगा मैं खूद?

Sunday, August 5, 2012

दोस्त


एक अर्सा बीत गया है, ये सावन बीत रहा है, 
लम्हो के कुछ बीज़ थे बोए, पर बारिश अभी तक नही हुई है|

कुछ फ़ुर्सत सबको मिल जाती, ये महफ़िल फिर लग जाती,
गर बारिश फिर भी ना होती, तो कोई गम ना होता, 

सब एक जगह मिल जाते, यादों से ही चेहरे खिल जाते,
कुछ लम्हे हम फिर चुराते, कुछ किस्से हम फिर सुनते |

यादो की नाव बनाते, बातों की पतवार से चलाते 
खुशी के आँसू की नदी में, कुछ आगे बढ़ते जाते |

जो साथ सभी का होता, किनारे की तलाश ना रहती
यूही मस्त लहर मे, हम अपना समय काटाते |

ना फ़ुर्सत किसी को मिली है, ना महफ़िल फिर ये लगी है
मिलने का तो नाम नही है, और चेहरे मुरझा गये है |


हाँ, बड़ा अच्छा हमको लगता , कुछ दोस्त अगर मिल जाते |

Monday, July 30, 2012

उड़ान


उड़ने की चाहत है सबको...
पँखो का सहारा मिला नही...  

पँखो को अब कुछ और नही...
सपनो की ज़रूरत होती है...  

कुछ पाने के सपने देखो...
सपनो से पंख मिल जाएँगे...  

इन पँखो को हवा लगने दो...
खुले आसमान मे उड़ चलो...  

एक डाल से दूसरी डाल पर...
पेड़ो की छाँव मे खेलो... 

रंग बिरंगी तितलियो के संग...
सतरंगी इंद्रधनुष का तीर बनो.. 

सूरज की आँखों मे घुरो..
चंदा की शीत मे आराम करो.. 

तेज़ हवा के झोंको के...
तुम अब साथी बन जाओ...  

घने बादलो की औट लो...
कभी धूप मे तुम घुमा करो... 

इस चाहत को ना अब क़ैद करो ..
सपने देखो...   उड़ान भरो...  खुले आसमान (गगन) मे राज़ करो |

Wednesday, July 18, 2012

औरत


गर्भ से आई एक आवाज़ 
माँ तुम मुझसे क्यूँ हो नाराज़ |

पाप क्या ऐसा मेने किया
कि हो रही मेरी भ्रूण हत्या |

इस दुनिया मे आना चाहती हूँ
रंगो मे रंग जाना चाहती हूँ |

कुछ पाना है, कुछ बनना है
दुनिया में कुछ करके जाना है |


बेटी, पाप तुमने कोई नही किया
पर दुनिया का अन्याय भी नहीं सहा |

माना हम है जन्म दाता 
लेकिन कहाँ कोई हमारी सुनता |

इस दुनिया में तुम कदम रखलो
उससे पहले औरत की व्यथा सुनलो | 

बाप से सहम के रहना होगा
भाई से डर के रहना होगा |

जात हमारी पहचान नही है
पीहर हमारा घर नही है |

कोई राक्षसों जैसे तुम्हे प्रताडेगा
कोई आँखो से बलात्कार करेगा |

खुद कोई शौक ना पालना
बीवी बनके घर संभालना |

उम्र भर हमे कोसा जाएगा
अहम के नीचे कुचला जाएगा |

चुप्पी साधे रहना होगा
सब कुछ तुमको सहना होगा |

आगे भी कुछ सुनना चाहती हो 
अभी भी दुनिया मे आना चाहती हो ?

Saturday, July 14, 2012

52 सेकंड


मैं एक आम इंसान हूँ,
दो वक़्त की रोटी के लिए 
रोज़ नौ घंटे की नौकरी करता हूँ |


एक आज़ाद देश का नागरिक हूँ, 
पर गुलामी की बेड़ियों से निकलने के लिए
आए दिन आंदोलन करता हूँ |


हर पाँच साल में सरकार चुनता हूँ,
और अगले पाँच साल तख्ता पलट हो
ये ख्वाब देखता हूँ |


अन्ना के हर अनशन की रैली में जाता हूँ,
और पकड़े जाने पे अगले ही दिन,
रिशवत देके छुटकारा पाता हूँ |


हर रविवार आमिर के साथ,
डेढ़ घंटे मे सब बदलने के ख्वाब देखता हूँ,
फिर अगले रविवार 'सत्यमेव जयते' के प्रसारण का इंतज़ार करता हूँ |


किसी लड़की की भ्रूण हत्या, रेप, मोलेस्टेशन की खबरसुनके
फेसबुक पर जस्टीस फॉर वूमन के कमेंट लिखता हूँ
अगली बड़ी खबर आने तक, उसपे लाइक गिनता हूँ |


ना जाने कितनी ऐसी बातें है, जिनको जहन में भरा है
चिंतन किया है, और शायद यह निष्कर्ष निकाल पाया हूँ कि ...


मैं एक हिंदुस्तानी हूँ, 65 बरस का हो गया हूँ, 
पर आज भी 15 अगस्त, 26 जनवरी को
52 सेकंड के जन गन मन की ज़िंदगी जीता हूँ |


Sunday, July 8, 2012

वास्तविकता


रात के दो बज रहे है ...
दोपहर में बारिश हुई थी..
और सड़क धुली धुली लग रही है...
चाँद शरमा कर काले बादलो से परदा कर रहा है.. 


खिड़की खुली हुई है...
मीठी मीठी हवा आ रही है ..
गीली मिट्टी की भीनी खुशबू है, 
या शायद उसके बाल खुले है..
अंतर करना मुश्किल हो रहा है...


उसके घर का चक्कर काटा अभी हमने...
अंदर बत्ती जल रही थी, और गाना चल रहा था..
"गली में आज चाँद निकला......" 
मानों अंदर बैठा चाँद बाहर निकलने को बैताब है ..


उसी के घर के सामने कुछ देर इंतज़ार किया...
शायद चाँद सही मे बाहर निकले...
अफ़सोस, ये भी पर्दो के पीछे ही रहा...
और अगली धुन सुनाई दी .."आज जाने कि ज़िद्‍द ना करो
हमसे और वहाँ रुका ना गया |


ख़यालों और हक़ीकत में बहुत फ़र्क होता है, 
ख़याल है जो उपर बुन दिए है, 
हक़ीकत है, कि बैठे है हम अपनी स्क्रीन के सामने, 
बुन रहे है कुछ ख़याल  
चाय की चुस्की लेने को दिल है बैताब, लेकिन है नही किसी का साथ |


और वास्तविकता ऐसी है, जो किसी से बयान भी ना कर पाएँगे |

Monday, June 18, 2012

सपने


सपने कई देखे...
और, कई सपने टूटे..

दिल है, कि फिर भी माना नही...
सपने देखना इसने छोड़ा नही ..

सपने देखना, दिल की आदत है...
दिमाग़ का ना कोई इसपे ज़ोर है...

दोनो रस्सी से बँधे है...
एक दूसरे से दूर भाग रहे है...

रस्सी की इस खींच तान में ...
घुटन हो रही, मेरे सीने मे..

सपनो पे जो लगाम लगाए...
तो थोड़ा चैन आ जाए...

दिलो-दिमाग़ जो आराम फरमाये...
एक झपकी हम भी लगाए...


और, ...और फिर कुछ सपने देखे...|

Tuesday, March 6, 2012

चोरी


खेल कई खेले,
थे दूसरो ने रचे ...

किताबे कई पढ़ी,
थी दूसरो ने गढ़ी ...

पाँव कई गाँव मे पड़े,
थे दूसरो ने ढूँढे ...

गीत कई गुनगुनाए,
थे दूसरो ने लिखे ...

फ़िल्मे कई देखी,
थी दूसरो ने बनाई...

रैलिओं मे कई बार दौड़ा,
था हुआ सीना दूसरो का चौड़ा ..

नारे कई लगाए,
थे किसी और के लिए बनाए ...

फल कई खाए,
थे बीज दूसरो ने बोए ...

उंगलिया खूब उठाई,
थी दूसरो पे साधी ...

कमियाँ खूब ढूंढी,
थी दूसरो मे लगी...

सुझाव कई सोचे,
थे दूसरो को दिए ...


सोचता हूँ ...

चोरी खूब किया...जो था दूसरो ने बनाया
मैने किया क्या - जीवन जिया क्या ?


Monday, March 5, 2012

सेक्टर पाँच


जंगल है
इमारतों से भरा..

कोई खिला रहा ...
तो कोई पिला रहा ...
कही ठेला है लगा... 
तो कही झमेला है हुआ... 

चलके आइए ...
चलाके ले जाइए ...
बैंक है ..या मारुति दुकान?
लोन है बँट रहा 


पेन लेके आइए ...
नौकरी लेके जाइए ..
कॉलेज है या प्रेस..?
डिग्रिया है छप रही 


हाउस है फुल ...
और है बाहर भीड़
'बिग' सिनेमा भी है छोटा पड़ा...

दिल जले हो ..या जुड़े
बार है 'ओपन' सबके लिए 


देश है आज़ाद..
नागरिक नही..
चमकते शीशों के पीछे 
एक जेल है खुली 
क्लाइंट के लिए ज़िंदगी
जहाँ क़ैद कर रखी...


झुंड है - चलते जा रहे..
किसी से ना कुछ लेना ..
ना कुछ किसी को देना ..
और रुकना है मना... 


उठ सवेरे हर रोज
भूल जाता हूँ खुदको..
चल देता हूँ... 
इसी जंगल की सैर पे..
हर शाम लौट आता हूँ..
शायद इसीलिए भूला नही कहलाता हूँ |