Thursday, August 30, 2012

इंतज़ार


साँझ पड़े ढल जाता है ये,
पर हर सुबह उसी सूरज को उगते हुए देखता हूँ

आकार, रंग रूप बदलकर ही सही,
हर रात आकाश मे कमजोर चाँद को भी चमकते देखता हूँ...

पतझड़ मे पीले बनके झड़ तो जाते है ये,
पर फिर बसंत मे उन्ही पत्तो को उगते हुए देखता हूँ

हर मौसम अपना रंग दिखा के चला तो जाता है,
पर फिर उसी मौसम को लौटते हुए देखता हूँ...

उड़ जाते है, सुबह सुबह सब पंछी,
पर हर सांझ ढले उन्हे लौटते हुए देखता हूँ...

कुछ लोग छोड़ चले गये है,
इंतज़ार कर रहा हूँ.. शायद उन्हे भी लौटते हुए देखूं |

कोना


कलाकारों का लगा था दरबार
आए हुए थे वहाँ कुछ चित्रकार
कर रहे थे अपने काम का प्रचार
कुछ हमारी भी इच्छा हुई
एक तस्वीर दिल मे छपवाने की
कुंची से, दिल के कोने वाली दीवार
पे एक एक चेहरा बना दिया
और रंग भर दिए आग के ..

दरबार तो उठ गया..
चित्रकार भी चला गया दूसरे काम पे
पर वो चेहरा आज भी वहाँ कोने में
तन्हा बैठा है, और उसमे भरे रंग
इस दिल को जलाते है |

Wednesday, August 29, 2012

बिल


दरवाजे के ठीक बगल मे 
एक जूता रखने का स्टेंड है
जूते इतने ज़्यादा है, 
कि स्टेंड छोटा पड़ रहा है 
पर पहनने के लिए पाँव सिर्फ़ दो ही है 

अब हमे ज्ञान मत देना की 
कुछ पैसा दान ही कर देते
इतना फालतू जुतो मे ना खरच के 
किसी को दो वक्त की रोटी दे देते

हम रोज़ नये जोड़ी जूते नही पहनते 
ना हमे शौक है दिखावा करने का 
रोज़ एक ही जोड़ी पहनते है 
बाकी जुतो मे चूहो ने अपना घर बना लिया है 
अब इस शहरी भीड़ भाड़ मे उन्हे कहाँ बिल खोदने मिलेगा |

Tuesday, August 28, 2012

सोच

ऐसा कुछ भी तो नही, 
जो बदल गया हो 
पिछले कुछ सालो में

वही हिन्दुस्तान, वही पाकिस्तान 
वही आपस में चल रहे मैच का रोमांच
वही झगड़े, वही विस्फोट और वही आतंकवाद 

यहाँ तक की वही सोच - 
गर पैदा हुआ होता विभाजन से पहले 
तब भी सोच रहा होता यही उस रोज़

विभाजन के बाद सचिन होगा किस और
हिन्दुस्तान या पाकिस्तान ?
कभी ... ये ख़याल नही आया होता -

कि काश ये विभाजन ही ना हो |

Saturday, August 25, 2012

कर्तव्य

बँट रहे थे बस्ती मे मूल अधिकार,
मच गया था वहाँ पे हाहाकार

उमड़ पड़े थे यूँ झुंड मे सब,
जाने मौका मिलेगा ऐसा फिर कब

पहले आओ, पहले पाओ,
ऐसा कोई हिसाब ना था

जिज्ञासा में फिर भी हमे,
अब और इंतज़ार ना था

कागज का एक टुकड़ा,
काले अक्षरों से कुछ उकेरा

टर्मस् एंड कंडीशन लागू,
बगल मे चमकता सितारा

साथ मे जो शर्ते रखी थी,
वो हमने नहीं पढ़ी थी

मूल अधिकारों के साथ
कर्तव्य की किसे पड़ी थी |

Tuesday, August 21, 2012

2G


समय कितना तेज़ी से बदल रहा है ||

एक समय था,
जब स्कूल जाया करते थे सिर्फ़ उसे देखने
गर दिख जाएगी वो तो दिन अच्छा बीतेगा
बात तो उन दिनों होती ही नही थी ..

बस नज़रे मिलती थी, और प्यार हो जाता था
मानो प्यार तो नेत्रशोथ ( conjunctivitis ) है |


धीरे धीरे इंटरनेट का ज़माना आ रहा था
उसके नाम के सामने की हरी बत्ती जलती
और दिल की धड़कन चलने लग जाती
कभी पीली या लाल होती, तो लगता
मानो ज़िंदगी मे विराम लग गया है |

लिखकर बात करना कितना आसान होता है
ये तब जाके समझ आया
जो बात ज़ुबान तक नही आ पाती
कीबोर्ड के सहारे झट से टाइप कर देते थे

जब तक पूरे दिन मे बात नही होती
एक उकसाहट सी बनी रहती थी
बस ऑनलाइन होना है और बात करना है

बात हो जाने के बाद, ख़यालो मे डूब जाना ...
आह ..सोचकर लगता है, कितना हसीन होता था

मोबाइल उतना प्रचलित नही था
कॉल, मेसेज रेट्स थोड़ा महँगा था

और आज देखो, सब इतना सस्ता हो गया है
की हर पल फ़ोन पे जवाब देना पड़ता है,
कहाँ हो जानू, कब आओगे, कॉल बेक क्यूँ नही किया
वग़ैरह, वग़ैरह, वग़ैरह....
तंग आ गया हूँ |
प्रेमी हूँ, या कैदी ?

काश ये 2 जी स्केम ना हुआ होता ||

बॉलीवुड

कुछ ऐसी है कहानी
है सौ बरस पुरानी

फालके साहब ने की थी शुरुआत,
सच की थी ना कोई आवाज़

आलम आरा ने खामोशी तोड़ी
प्यासा ने कविताएँ जोड़ी

किसान कन्या ने रंग भरा
मदर इंडिया ने इतिहास रचा

मुघल - ए - आज़म ने प्रेम सिखाया
राज कपूर ने आवारा बनाया

राजेश खन्ना बने पहले सुपर स्टार
आँखो की टीम टीम से किया लड़कियो को शिकार

धर्म पाज़ी थे हमारे ही-मेन
अमिताभ थे एंग्री यंग मेन

गब्बर से हर बच्चा डरता
मोगेंबो हमेशा खुश होता रहता

भाई भाई के बीच दीवार बनी
बंगला, पैसा, गाड़ी से बड़ी माँ बनी |

स्वर्ण युग से गाड़ी कुछ आगे बढ़ी
परिवारिक, रोमॅंटिक की लगी झड़ी

कयामत मिलने तक प्यार किया
दिलवाले बनके दुल्हनिया का इंतेज़ार किया

दिलो का बादशाह - शाहरुख ख़ान
सबका भाई - सलमान ख़ान

डेविड - गोविंदा बने कॉमेडी किंग
अक्षय - अजय बने स्टंट किंग

आमिर का एक अलग ही ब्रह्मांड
उसने बनाया खुदको एक ब्रांड |

सत्या से एक नया स्कोप खुला
'कलाकारो' को 'स्टार' के उपर दर्जा मिला


आधुनिक काल मे विश्व मे लोकप्रियता बढ़ी
लेखन, निर्देशन में हुनरता मिली


चक दे, रंग दे और लगान से
देश भक्ति जागी हर आवाम में


करोड़पति बना वो गंदी बस्ती से
खिताब दिला गया ओस्कर मंच पे


इस कहानी को जो खींचना चाहे
वासेपुर की पीढ़िया ख़तम हो जाए


बॉलीवुड है नाम मेरा
हर शुक्रवार होता भाग्य का फ़ैसला मेरा


100 बरस की उमर है मेरी
3 घंटे की ज़िंदगी में जीता |



Saturday, August 18, 2012

असंस्कारी


बेसुधी सी, नकली मुस्कान चढ़ाए 
संकड़ी गलियों में, लाल बत्तियों में 
भभकते कमरो में, तंग गद्दो पे 
अपना ठीकाना बना लिया | 


मुँह छिपाके लोग आते है
कुछ पैसे थमा जाते है 
कुछ हमे साथ ले जाते 
पर आबरू लूट जाते है|


भावनाए घर छोड़ के आते 
कामनाएँ साथ लेके आते
जिज्ञासा भर भर के लाते
हवस अपनी मिटा के जाते |


फ़र्क नही पड़ता अब कुछ 
महसूस नही होता अब कुछ 
बुरा भी नही लगता अब कुछ 
अच्छा जो बचा नही अब कुछ |


शायद रोज़ नये लोग है आते  
अलग डील-डौल के भी गर होते 
हमे तो वो सब एक ही लगते 
रोज़ हमे नया नाम दे जाते |


नाम में क्या रखा है 
पता जान के क्या करना है 
वैश्या मुझे बुला लेना 
पुनर्वासन की बात चले तो 
असंस्कारी कहके समाज से निकाल देना |

Wednesday, August 15, 2012

छुट्टी

सुबह जल्दी उठना, सफेद पौशाक पहनना 
माँ, बाबा, भाई, बहन से लेकर, 
बस स्टेंड तक मिलने वाले राहगीर को
बस मे ड्राइवर से लेकर, साथियों को 
स्वतंत्रता दिवस की मुबारक बाद देना  |

देश भक्ति की धुन मे स्कूल पहुँचना,
प्रार्थना स्थल पे पंक्ति मे  लगना 
ध्वजारोहण पे सलामी देना 
और राष्ट्रगान पे सावधान मे खड़े होना 
वापस आते हुए अपने लड्डू लेना |

हाँ माना लड्डू के लिए ही सही 
पर एक जज़्बा था, एक जुनून था 

यादें है जो बचपन मे पिरोयी थी
स्वत्रंता दिवस की, और आज..

छुट्टी से बढ़कर कुछ और नही बचा |


Tuesday, August 14, 2012

कब बदलूँगा मैं ?

राह मे चलते हुए देखा, सामने लड़की के कपड़े फट रहे थे,
घर आके टीवी मे देखा तो रेप की सनसनी खबर चल रही थी |

पड़ोस मे कल दिन दहाड़े किसी का कत्ल हो गया, वो मेने नही देखा
पड़ोसी की लड़की रात घर देर से आई, पूरा मोहल्ला देख रहा था |

पड़ोस मे जब कत्ल हुआ, तो चीखने की आवाज़ नही सुनाई दी
पड़ोसी का लड़का जब रियाज़ कर रहा था, तो कान फट गये |

दंगे भड़के थे बगल वाली फॅक्टरी मे और आग भी लगी थी 
बंद शीशे के ओफिस मे ना शोर सुना, ना जलन महसूस हुई |

फूटपाथ पर कुचले हुए आदमी का बहता खून तो दिखाई दिया
पर कुचलने वाली तेज़ रफ़्तार की गाड़ी का नंबर प्लेट नही | 

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जिस लड़की का रेप हुआ, उससे मेरा कोई रिश्ता नही था 
- हो सकता था |

जिस का कत्ल हुआ, उसको मैं जानता तक नही था 
- जान सकता था |

जिस फॅक्टरी मे आग लगी थी, वो तो मेरा प्रतिद्वंदी था 
- समर्थक हो सकता था |

फूटपाथ पर जो कुचला गया - उससे कुछ लेना देना नही था 
- लेन देन हो सकता था |

पर फिर भी.....
जब भी घर से बाहर निकलता हूँ, बन जाता हूँ अर्जुन
जिसको दिखाई देती है सिर्फ़ चिड़िया के आँख की पुतली  

और जब देखता हूँ टीवी पे ख़बरे, या पढ़ता हूँ अख़बार 
आँखे हो जाती है अनगिनत और सोचता हूँ - " कब बदलेगा भारत देश " 


कभी ये नही सोचा  "कब बदलूँगा मैं खूद?

Sunday, August 5, 2012

दोस्त


एक अर्सा बीत गया है, ये सावन बीत रहा है, 
लम्हो के कुछ बीज़ थे बोए, पर बारिश अभी तक नही हुई है|

कुछ फ़ुर्सत सबको मिल जाती, ये महफ़िल फिर लग जाती,
गर बारिश फिर भी ना होती, तो कोई गम ना होता, 

सब एक जगह मिल जाते, यादों से ही चेहरे खिल जाते,
कुछ लम्हे हम फिर चुराते, कुछ किस्से हम फिर सुनते |

यादो की नाव बनाते, बातों की पतवार से चलाते 
खुशी के आँसू की नदी में, कुछ आगे बढ़ते जाते |

जो साथ सभी का होता, किनारे की तलाश ना रहती
यूही मस्त लहर मे, हम अपना समय काटाते |

ना फ़ुर्सत किसी को मिली है, ना महफ़िल फिर ये लगी है
मिलने का तो नाम नही है, और चेहरे मुरझा गये है |


हाँ, बड़ा अच्छा हमको लगता , कुछ दोस्त अगर मिल जाते |