Monday, June 18, 2012

सपने


सपने कई देखे...
और, कई सपने टूटे..

दिल है, कि फिर भी माना नही...
सपने देखना इसने छोड़ा नही ..

सपने देखना, दिल की आदत है...
दिमाग़ का ना कोई इसपे ज़ोर है...

दोनो रस्सी से बँधे है...
एक दूसरे से दूर भाग रहे है...

रस्सी की इस खींच तान में ...
घुटन हो रही, मेरे सीने मे..

सपनो पे जो लगाम लगाए...
तो थोड़ा चैन आ जाए...

दिलो-दिमाग़ जो आराम फरमाये...
एक झपकी हम भी लगाए...


और, ...और फिर कुछ सपने देखे...|