Sunday, May 23, 2021

राजा का इतिहास

कितना इतिहास पढ़ोगे
कितना इतिहास गढ़ोगे

एक राजा और प्रजा की
कितनी कहानियां सुनोगे

कहानी में एक किरदार होगा
वो किरदार राजा का होगा

राजा का चित्रण हर जगह होगा
प्रजा पे तो सिर्फ नियंत्रण होगा 

राजा फिर विकास की बात करेंगे
प्रजा फिर उनपे विश्वास करेगी 

राजा के खूब समर्थक होंगे
राजा के आगे जो नतमस्तक होंगे 

राजा जी मन की बात कहेंगे
प्रजा फिर उनकी बात सुनेगी

राजा जी फिर आश्वासन देंगे
प्रजा फिर उनका शासन सहेगी

राजा जी फिर अध्यादेश लायेंगे
प्रजा को छोड़ वो परदेश चले जायेंगे

प्रजा के घर में जब शादी होगी
पैसे नहीं है, कहके राजा की हसीं निकलेगी

राजा जी फिर आदेश देंगे
प्रजा हमारी फिर थाली पिटेगी

राजा डालेंगे फिर मोर को दाना
प्रजा का फिर लूट जायेगा बयाना

प्रजा फिर भीख मांगे, खुदको घुटन से बचाने 
राजा जी लग जाएंगे फिर अपनी दाढ़ी बढ़ाने

राजा की चुप्पी फिर हताश करेगी
प्रजा की जब गंगा में लाश बहेगी

राजा फिर भी किसी की ना सुनेंगे 
वो सिर्फ अपना महल चिनेंगे 

राजा के महल का फिर टिकट बिकेगा 
प्रजा की लाशों भरी नींव पे जो टिकेगा

राजा की आंखो में आंसू भरा एक दृश्य होगा
प्रजा का जहां न कोई इतिहास, ना भविष्य होगा

राजा फिर एक इतिहास लिखेंगे
राजा फिर एक इतिहास गढ़ेंगे

राजा के इस इतिहास में
राजा ही राजा सब कुछ होंगे ।

- अंकित कोचर

Sunday, May 9, 2021

कतारों का लोकतंत्र

बचपन से हमें
कतारों से प्रेम सिखा दिया जाता है
कतारों में खड़े होना हमारी जिंदगी का 
पहला अनुशासन का पाठ होता है 

और उस अनुशासन के पाठ से लेकर, 
अपने हक की हर एक लड़ाई लड़ने तक

स्कूल से लेकर, कॉलेज जाने तक
डिग्री लेने से लेकर, नौकरी पाने तक

चुनाव प्रचार की रैलियों से लेकर, 
वोट देकर सरकार चुनने तक

बैंक में खाते खुलवाने से लेकर,  
नोटबंदी में पैसे निकालने तक

प्रवासी मजदूरों के पलायन से लेकर
हस्पतालों में भर्ती होने तक 

दवा - पानी, ऑक्सीजन पाने से लेकर
टीका उत्सव में टीका लगवाने तक

अरे मंदिर में दर्शन से लेकर, प्रसाद पाने तक

जिंदा रहने से लेकर, मरने तक
शमशानों और कब्रिस्तानों तक

ये लोकतंत्र है
जो कतारों पे टिका है
और इस लोकतंत्र के रखवालों को
कतारें नहीं दिखती,  
कतारों में किसी का दर्द नही दिखता 
और ना दिखता है, 
कतारों में लड़खड़ाता ये लोकतंत्र 

उन्हें बस दिखाई देते है वोट
और चूंकि, मुर्दा लोग वोट नहीं डालते 
इसलिए, वे ये हिम्मत रखते है बोलने की 
मैं जहां तक देख सकता हूं 
मुझे सिर्फ वोट ही वोट दिखाई देते हैं ।

- अंकित कोचर