मुजरिम
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क़ैद है, सलाखों के पीछे
पिछले कुछ दशकों से |
गवाह थे, सबूत भी थे
समय के साथ, अब ना रहे
जनता
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इंसाफ़ की माँग कर रही है
पीढ़ी दर पीढ़ी, कचहरी के
चक्कर काटे जा रही है |
सवाल
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क़ैद है कुछ ज़हन में,
बिल्कुल मुजरिमों की तरह
ज़ुबान तक आते है,
चक्कर काट के चले जाते है
बिल्कुल जनता की तरह |
जिनके पास जवाब थे
वो अब नही रहे ,
सबूतों-गवाहों की तरह |