Sunday, May 4, 2014

इंद्रधनुष

ये ढलता हुआ सूरज..
बादलों के झुंड में
मानों आँहे भर रहा है  ..

ये आँहे भरता सूरज
ढल नही...
मानो लुढ़क रहा..

ये लुढ़कता हुआ सूरज...
मानो सुहानी शाम को
मदमस्त रात में ले जा रहा है..

ये मदमस्त रात..
हमें लेकर चल रही है
सपनों की दुनिया में..

ये सपनों की दुनिया से..
जब अंगडा़ईयाँ टूटेगी ..
सुबह की गोद में ..

तो उम्मीद करते है

ये मेघ भी फिर से होंगे ...
मेघों से बरखा भी होगी ...
लुढ़कता सूरज फिर उठेगा..
और शायद मन मोहक ..
सतरंगी इंद्रधनुष भी होगा ...