Sunday, May 10, 2020

हवाई सपने

वो हवाई चप्पल वालो को
हवाई जहाज़ का सपना बेचा था

उनकी हवाई चप्पलें घिस गई
अपने सपने पूरे करते करते

वो हवाई जहाज़ तो उन्हें ही नसीब हुआ
जो हवाई चप्पल में सफर ना करते थे

वो दो वक्त की रोटी कमाने
घर बार अपने छोड़ निकले थे

वो दो वक्त की ही रोटी के संग
फिर अपने घर को लौट रहे थे

जिस पटरी को, जिस रेल को
बड़ी मेहनत से उन्होंने बनाया था

उसी पटरी पे , उसी रेल से
अपने घर को लौटना चाहा था

उसी पटरी पे, उसी रेल से
वो अपने घर ना लौट सके

उसी पटरी पे, उसी रेल ने
वो सपने उनके कुचल दिए |


अंकित कोचर 

सरकारी दीवार


दीवारें कभी बहरी नहीं होती
चूंकि दीवारों के भी कान होते है
पर सरकार तो बहरी ही होती है
कानों के होते हुए भी वह कुछ नहीं सुनती है 

दीवारें अक्सर गूंगी होती है,
पर फिर भी वो जो सुनती है
उसी को बार बार दोहराती है 

सरकार कभी गूंगी नहीं होती
पर चूंकि सरकार बहरी होती है
इसलिए वो कुछ नहीं सुनती है
और जो भी कहती है
वो सिर्फ अपने मन की बात होती है 

सरकार चाहती है कि
जनता गूंगी हो
ताकि वो चुप रहे
ना सवाल करे
ना चीखे ना चिल्लाए
पर बहरी ना हो
ताकि वो जब अपने मन की बात कहे
तो उसे बस जनता सुनती रहे 

जनता चाहती है कि
सरकार ना गूंगी हो , ना बहरी हो
और अंधी तो बिलकुल ना हो
ताकि आस पास में को कुछ ग़लत हो रहा है
वो उसे देख सके, सुन सके
और उसपे आवाज उठा सके 


वैसे तो सरकार और दीवार में बहुत अंतर है
बहुत असमानता है
वो दोनो एक दूसरे का पर्याय कभी नहीं है
पर सरकार और दीवार
ये दोनों आपको कैद करके रख सकती है 


अंकित कोचर