वो हवाई चप्पल वालो को
हवाई जहाज़ का सपना बेचा था
उनकी हवाई चप्पलें घिस गई
अपने सपने पूरे करते करते
वो हवाई जहाज़ तो उन्हें ही नसीब हुआ
जो हवाई चप्पल में सफर ना करते थे
वो दो वक्त की रोटी कमाने
घर बार अपने छोड़ निकले थे
वो दो वक्त की ही रोटी के संग
फिर अपने घर को लौट रहे थे
जिस पटरी को, जिस रेल को
बड़ी मेहनत से उन्होंने बनाया था
उसी पटरी पे , उसी रेल से
अपने घर को लौटना चाहा था
उसी पटरी पे, उसी रेल से
वो अपने घर ना लौट सके
उसी पटरी पे, उसी रेल ने
वो सपने उनके कुचल दिए |
- अंकित कोचर
हवाई जहाज़ का सपना बेचा था
उनकी हवाई चप्पलें घिस गई
अपने सपने पूरे करते करते
वो हवाई जहाज़ तो उन्हें ही नसीब हुआ
जो हवाई चप्पल में सफर ना करते थे
वो दो वक्त की रोटी कमाने
घर बार अपने छोड़ निकले थे
वो दो वक्त की ही रोटी के संग
फिर अपने घर को लौट रहे थे
जिस पटरी को, जिस रेल को
बड़ी मेहनत से उन्होंने बनाया था
उसी पटरी पे , उसी रेल से
अपने घर को लौटना चाहा था
उसी पटरी पे, उसी रेल से
वो अपने घर ना लौट सके
उसी पटरी पे, उसी रेल ने
वो सपने उनके कुचल दिए |
- अंकित कोचर