Tuesday, July 12, 2016

कश्मीर




मुझे नहीं समझ घाटी की  
वहाँ की सुंदर वादियों की 
वहाँ से बहती नदियों की  
वहाँ की राजनीति की  
वहाँ रहने वाले लोगो की 
और उनके सोच की  
वहाँ हुए पंडित निष्क्रमण की 
वहाँ हुए मानव अधिकारों के शोषण की  
वहाँ पनप रहे आतंकवाद की  
वहाँ पनप रहे अलगाववाद की  
वहाँ रहे राम या रहीम की  
मुझे समझ है, तो बस  
इंसान और इंसानियत की 
इंसान है, उसे इंसान रहने दो 
नागरिक, सैनिक या आतंकवादी में मत बाँटो |  

Friday, July 8, 2016

लिखना बाकी है


कभी लगता है जैसे कि  
बहुत कुछ पा लिया है
और अगले पल जैसे कुछ नहीं,  
अभी बहुत कुछ पाना बाकी है |  
 
कभी लगता है जैसे कि  
ख्वाब देखे है बहुत और कुछ उनमें पूरे हुए है  
पर अभी भी बहुत देखने 
और बहुत पूरे होने बाकी है |  
 
कभी लगता है की जज़्बात जो  
स्याही के साथ घुलकर पन्नो पे उतरते थे  
अब ख़तम हो गये है, पर अगले पल लगता है जैसे  
अभी उन्हें कीबोर्ड की ठक-ठक से ब्लॉग पे उतरना बाकी है |  
 
काफ़ी समय से कुछ लिखा नहीं 
तो मानों ऐसा लगता है  
जैसे लिखना छोड़ दिया है  
पर ऐसा नहीं है, अभी बहुत कुछ लिखना बाकी है |