बचपन से हमें
कतारों से प्रेम सिखा दिया जाता है
कतारों में खड़े होना हमारी जिंदगी का
पहला अनुशासन का पाठ होता है
और उस अनुशासन के पाठ से लेकर,
अपने हक की हर एक लड़ाई लड़ने तक
स्कूल से लेकर, कॉलेज जाने तक
डिग्री लेने से लेकर, नौकरी पाने तक
चुनाव प्रचार की रैलियों से लेकर,
वोट देकर सरकार चुनने तक
बैंक में खाते खुलवाने से लेकर,
नोटबंदी में पैसे निकालने तक
प्रवासी मजदूरों के पलायन से लेकर
हस्पतालों में भर्ती होने तक
दवा - पानी, ऑक्सीजन पाने से लेकर
टीका उत्सव में टीका लगवाने तक
अरे मंदिर में दर्शन से लेकर, प्रसाद पाने तक
जिंदा रहने से लेकर, मरने तक
शमशानों और कब्रिस्तानों तक
ये लोकतंत्र है
जो कतारों पे टिका है
और इस लोकतंत्र के रखवालों को
कतारें नहीं दिखती,
कतारों में किसी का दर्द नही दिखता
और ना दिखता है,
कतारों में लड़खड़ाता ये लोकतंत्र
उन्हें बस दिखाई देते है वोट
और चूंकि, मुर्दा लोग वोट नहीं डालते
इसलिए, वे ये हिम्मत रखते है बोलने की
मैं जहां तक देख सकता हूं
मुझे सिर्फ वोट ही वोट दिखाई देते हैं ।
- अंकित कोचर
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