Sunday, May 10, 2020

सरकारी दीवार


दीवारें कभी बहरी नहीं होती
चूंकि दीवारों के भी कान होते है
पर सरकार तो बहरी ही होती है
कानों के होते हुए भी वह कुछ नहीं सुनती है 

दीवारें अक्सर गूंगी होती है,
पर फिर भी वो जो सुनती है
उसी को बार बार दोहराती है 

सरकार कभी गूंगी नहीं होती
पर चूंकि सरकार बहरी होती है
इसलिए वो कुछ नहीं सुनती है
और जो भी कहती है
वो सिर्फ अपने मन की बात होती है 

सरकार चाहती है कि
जनता गूंगी हो
ताकि वो चुप रहे
ना सवाल करे
ना चीखे ना चिल्लाए
पर बहरी ना हो
ताकि वो जब अपने मन की बात कहे
तो उसे बस जनता सुनती रहे 

जनता चाहती है कि
सरकार ना गूंगी हो , ना बहरी हो
और अंधी तो बिलकुल ना हो
ताकि आस पास में को कुछ ग़लत हो रहा है
वो उसे देख सके, सुन सके
और उसपे आवाज उठा सके 


वैसे तो सरकार और दीवार में बहुत अंतर है
बहुत असमानता है
वो दोनो एक दूसरे का पर्याय कभी नहीं है
पर सरकार और दीवार
ये दोनों आपको कैद करके रख सकती है 


अंकित कोचर 

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