Saturday, January 12, 2013

गुड़िया


इंसान की कल्पना,
और हो गयी रचना
एक सरहद की,
और बँट गयी,
ना सिर्फ़ ये दुनिया
जबकि बँट गया इंसान |

हिंद, पाक, देश-प्रेम, देश-द्रोह,
युध, शांति, आतंक, अमन
पनपी ऐसी कई कल्पनाएं |

और इन कल्पनाओं मे
ना सिर्फ़ कत्ल हुआ
सरहद पे बैठे जवानों का,
इस पार भी, उस पार भी
बल्कि कत्ल हुआ
उन अरमानों का भी
जो घर बैठे
आज भी इंतज़ार करते है
कि पापा छुट्टी पे आएँगे
और इस बार गुड़िया ज़रूर लाएँगे |

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