Tuesday, February 5, 2013

ख्वाब


सारी-सारी रात जागे थे, और देखा था खुली आँखो से एक ख्वाब
उगता सूरज देखेंगे, ओढ़ा था कल शाम जिसने पहाड़ो का नकाब

सवेरा हुआ ही था, कि आँख लग गयी, फिर टूटा था एक ख्वाब |

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