राह मे चलते हुए देखा, सामने लड़की के कपड़े फट रहे थे,
घर आके टीवी मे देखा तो रेप की सनसनी खबर चल रही थी |
पड़ोस मे कल दिन दहाड़े किसी का कत्ल हो गया, वो मेने नही देखा
पड़ोसी की लड़की रात घर देर से आई, पूरा मोहल्ला देख रहा था |
पड़ोस मे जब कत्ल हुआ, तो चीखने की आवाज़ नही सुनाई दी
पड़ोसी का लड़का जब रियाज़ कर रहा था, तो कान फट गये |
दंगे भड़के थे बगल वाली फॅक्टरी मे और आग भी लगी थी
बंद शीशे के ओफिस मे ना शोर सुना, ना जलन महसूस हुई |
फूटपाथ पर कुचले हुए आदमी का बहता खून तो दिखाई दिया
पर कुचलने वाली तेज़ रफ़्तार की गाड़ी का नंबर प्लेट नही |
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जिस लड़की का रेप हुआ, उससे मेरा कोई रिश्ता नही था
- हो सकता था |
जिस का कत्ल हुआ, उसको मैं जानता तक नही था
- जान सकता था |
जिस फॅक्टरी मे आग लगी थी, वो तो मेरा प्रतिद्वंदी था
- समर्थक हो सकता था |
फूटपाथ पर जो कुचला गया - उससे कुछ लेना देना नही था
- लेन देन हो सकता था |
पर फिर भी.....
जब भी घर से बाहर निकलता हूँ, बन जाता हूँ अर्जुन
जिसको दिखाई देती है सिर्फ़ चिड़िया के आँख की पुतली
और जब देखता हूँ टीवी पे ख़बरे, या पढ़ता हूँ अख़बार
आँखे हो जाती है अनगिनत और सोचता हूँ - " कब बदलेगा भारत देश "
कभी ये नही सोचा "कब बदलूँगा मैं खूद" ?
Phheeewww! Pich. Well written!
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