Sunday, August 5, 2012

दोस्त


एक अर्सा बीत गया है, ये सावन बीत रहा है, 
लम्हो के कुछ बीज़ थे बोए, पर बारिश अभी तक नही हुई है|

कुछ फ़ुर्सत सबको मिल जाती, ये महफ़िल फिर लग जाती,
गर बारिश फिर भी ना होती, तो कोई गम ना होता, 

सब एक जगह मिल जाते, यादों से ही चेहरे खिल जाते,
कुछ लम्हे हम फिर चुराते, कुछ किस्से हम फिर सुनते |

यादो की नाव बनाते, बातों की पतवार से चलाते 
खुशी के आँसू की नदी में, कुछ आगे बढ़ते जाते |

जो साथ सभी का होता, किनारे की तलाश ना रहती
यूही मस्त लहर मे, हम अपना समय काटाते |

ना फ़ुर्सत किसी को मिली है, ना महफ़िल फिर ये लगी है
मिलने का तो नाम नही है, और चेहरे मुरझा गये है |


हाँ, बड़ा अच्छा हमको लगता , कुछ दोस्त अगर मिल जाते |

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